रात के सन्नाटे का खौफ: अनजाने दस्तक और JNU का अनदेखा साया
कहते हैं कि कोई बच्चा जब पैदा होता है उसके बाद कुछ दिन माँ और बच्चे दोनों के लिए बहुत ज्यादा ध्यान रखने वाले होते हैं। इन दिनों कुछ शैतानी ताकतों की नजर माँ और बच्चे दोनों पर होती है। इसलिए कहा जाता है कि बाहर ना निकले। बच्चे को अकेला ना छोड़े। माँ को अकेला ना छोड़े।
हरीश की कहानी है ये। उनका कहना है ये कहानी तब की है जब वो इस दुनिया में आए थे। मेरी माँ बताती है कि उस वक्त तुम्हारे पिताजी forest department में काम किया करते थे, उनकी duty एक zoo में लगी थी। तब तुम्हारी बुआ जी आयी हुई थी हमारी देख रेख के लिए क्योंकि हम यहाँ अकेले थे।
एक रात जब हम सोने की तैयारी कर रहे थे तो रात के वक्त दरवाजे पर कोई आता है। वो दरवाजे को खटखटाने की आवाज इतनी खौफनाक थी कि एक दफा तो मेरी बुआ और माँ दोनों काँप उठे। ये कौन है? कौन इतनी रात को हमारे दरवाजे पर?
हम जिस गाँव में रहा करते थे वहाँ लोग बड़े मिलनसार थे, मिलजुल के रहा करते थे। लगा कि इस वक्त कोई आस पड़ोस से आया होगा, शायद किसी को कोई emergency हो। दरवाजा बार बार बजता रहा। मेरी बुआ उठी और कमरे के बाहर गयी। main दरवाजा बाहर था।
बुआ ने कमरे के बाहर आके थोड़ी ऊँची आवाज में पूछा, "कौन है?" पर दूसरी side से किसी की कोई आवाज नहीं आयी। दरवाजे में एक छोटा सा छेद था, उन्होंने बाहर देखा तो कोई नजर नहीं आया। अंधेरा और सन्नाटा पसरा पड़ा था। मुझे वैसे ही डर लग रहा था। तब मैं वापस कमरे में आ के बिस्तर पर लेट गई।
माँ ने पूछा, "कौन था?" बुआ ने कहा, "पता नहीं। मैंने पूछा भी पर कोई जवाब नहीं आया।" वो दोनों इस बात से थोड़ा सहम गईं के ऐसे रात में कौन हो सकता है।
थोड़ी देर बाद वही दरवाजे को बजाने की आवाज फिर से आयी। अबकी बार दरवाजा बजाने की आवाज थोड़ी ज्यादा थी। इस बार माँ और बुआ दोनों बहुत बुरी तरह से डर गए थे। बुआ की अब इतनी भी हिम्मत नहीं के बाहर main दरवाजे पर जाके देखे और वो आवाज लगातार आयी जा रही थी, ऐसा लग रहा था कोई दरवाजे को तोड़ ही देगा। हम यहाँ से किसी की मदद भी नहीं मांग सकते थे।
बुआ जी हिम्मत करके उठी, थोड़ी हिम्मत जुटा के बाहर दरवाजे की तरफ जाने लगी। वहाँ जाके फिर से पूछती है, "कौन है? दरवाज़ा तोड़ोगे? मैं आ रही हूँ।" उनके कहते ही वो आवाज रुक गयी। बुआ ने कहा, "जब तक कोई जवाब नहीं आता मैं दरवाज़ा नहीं खोलूँगी।" वो बताती कि मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे।
मैंने हिम्मत करते हुए उसी दरवाज़े की छेद से फिर से बाहर देखा लेकिन बाहर कोई नहीं था। पर वहाँ से किसी के कुछ फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी जैसे दो चार औरतें आपस में बात कर रही हो। वो आवाज़ बहुत हलकी थी, लग रहा था कोई तो है दरवाज़े के बाहर पर दिखाई नहीं दिया।
बुआ ने दुबारा से आवाज दी, "आप लोग कौन है और क्या चाहते है?" लेकिन वो अपनी ही बातों में लगी हुई थी। वो किसी भी बात का कोई जवाब नहीं दे रही थी। बुआ का डर के मानो बुरा हाल था। माँ पीछे से कमरे के अंदर से सब देख रही थी। माँ ने बुआ को आवाज दी, "तुम अंदर आ जाओ, ये कुछ और ही लग रहा है मुझे।"
जैसे ही माँ ने बुआ को ये कहा, वो डरी हुई तो वैसे ही थी, वो दौड़ते हुए कमरे में आ गयी। कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद करके बैठ गयी। कि अब फिर से वो दरवाज़े को बजाने की आवाज़ आने लगी और अबकी बार जैसे कोई दरवाजे पर पत्थर फेंक के मार रहा हो।
लेकिन हैरानी की बात ये थी, आसपास किसी ने वो आवाज नहीं सुनी। माँ और बुआ दोनों ने अपने आप को कमरे में कैद कर लिया। वो आवाज काफी देर तक आती रही, काफी देर तक। और जब आवाज रुकी तो सन्नाटा छा गया। रात की खामोशी और अंधेरे में खौफ इतना था कि बता नहीं सकते।
माँ ने बताया कि वो मुझे अपने सीने से लगाए हुए बैठी थी। नींद तो पहले ही उड़ चुकी थी। अब तक ये तो पता चल चुका था कि ये कोई इंसान नहीं है।
जब इन्होंने खुद को बंद किया हुआ था और अंदर से कुंडी लगा रखी थी, इन्हें महसूस हुआ कि कमरे के बाहर छत से कोई कूदता है। वो धमक की आवाज एकदम से सुनाई पड़ी। और वो थोड़ी-थोड़ी आवाज जैसे कोई वहाँ पे चल रहा है, वो आवाज भी काफी देर तक आती रही।
और थोड़ी देर बाद कमरे के बाहर से हल्की सी रौशनी में दरवाजे के नीचे से किसी के बाहर खड़े होने की परछाई नजर आई। जैसे कोई दरवाजे पर कान लगा के सुन रहा है। पर माँ और बुआ आपस में कोई बात नहीं कर रही थी। मुझे भी माँ ने कस के पकड़ लिया था, मैं सो रहा था।
काफी देर गुजर जाने के बाद जब उन्हें ये लगा कि वो यहाँ से चला गया है, तकरीबन आधे घंटे गुज़र जाने के बाद, साथ वाले कमरे से किसी की आवाज़ आयी। जैसे वो जो भी कोई हमारे घर में है, जो भी गया नहीं, साथ वाले कमरे में है। इस वाले कमरे में हमने कुछ फालतू का सामान रखा हुआ था, वहाँ से कुछ ना कुछ आवाज आनी शुरू हो गयी। पूरी रात वो आवाज आती रही, सुबह के चार बजने को थे और वो आवाज अब जाके बंद हुई।
इसके बाद, ऐसा लगा जैसे बाहर से कोई जा रहा हो और अबकी बार जानी पहचानी आवाज़ आयी, "दरवाज़ा खोलो, हम बच्चे को देखने आए है।" लेकिन मेरी बुआ और माँ ने दरवाज़ा नहीं खोला। उनके बार बार कहने के बाद भी दरवाज़ा नहीं खोला।
हमारे घर के पास एक छोटा सा मंदिर है जहाँ सुबह सुबह भजन चला दिए जाते है। से भजन चलने की आवाज आने लगी। और तब बाहर से आवाज आई जैसे वहाँ से गुस्से में कोई जा रहा है। और जाते-जाते उन्होंने कहा कि दरवाजा नहीं खोलो। उनके जाते ही वहाँ सन्नाटा पसर गया।
जैसे ही सुबह की थोड़ी-थोड़ी रोशनी होनी शुरू हुई, मेरी बुआ और माँ पास ही में दादा जी के घर चले गए। वहाँ जा के उन्हें पूरी बात बताई। वो लोग बहुत हैरान थे और बहुत ज्यादा डर गए थे। घर के पास में एक पुजारी जी रहते हैं, उन्हें वो घर दिखाया गया। घर देखने के बाद उन्होंने कहा कि इस घर में तो ऐसा कुछ भी नहीं है लेकिन ये बच्चियाँ यहाँ अकेली थी, घर में एक सात दिन का बच्चा भी था इसलिए उन शैतानी ताकतों ने उनपे हमला करना चाहा पर इन्होंने दरवाज़ा नहीं खोला जिस वजह से ये बच गए।
उस वक्त इन बच्चियों ने पाठ करना शुरू कर दिया था जिस वजह से इन्हें हिम्मत मिली और समझ गए। इसलिए कहते है कि जब घर में कोई बच्चा हो तो उसका ख्याल और उसकी माँ का ख्याल सबसे ज्यादा रखा जाता है, उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ते।
दूसरी कहानी, मेरा खुद के साथ हुआ एक ऐसा वाकया है जब दो हज़ार तीन या चार में मेरे घर पे नई नई cycle आयी थी। मेरा भाई और मैं उस वक्त बड़े खुश थे, बहुत बार कहने के बाद हमें वो cycle मिली थी। शुरू शुरू में तो हमने class चलाना सीखा पहले। और जब थोड़ी चलानी आयी तो हम लेके जाते थे उसे JNU के अंदर Jawaharlal Nehru University।
JNU बड़ी खूबसूरत जगह है। वहाँ के road बहुत अच्छे है, बहुत साफ सुथरे खाली रहते है। तो हमने सोचा यहाँ पे चला के थोड़ा और हाथ साफ हो जाएगा। उस time JNU के अंदर आने जाने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी, ये तो अभी पिछले कुछ समय से कुछ ज्यादा ही बवाल होता है।
हम जिस road पर cycle चलाते थे तो पूरा एक circle था, तकरीबन ढाई या तीन kilometre का circle और इक्का दुक्का गाड़ियाँ ही नज़र आती थी बस। तो ऐसे ही एक शाम मैं अपने दोस्त के साथ निकल पड़ा वहाँ के लिए। पाँच बज रहे थे शाम के। हमने पहले एक ढाबे पर बैठ के चाय पी और bread roll खाए।
उसके थोड़ी देर बाद हम उस circle पे निकल पड़ी cycle चलाने के लिए। हमारे दाएँ बाएँ बस जंगल ही जंगल कहीं कहीं पे hostel भी बने हुए थे। इसके अलावा अगर वहाँ पर कुछ था तो एक अजीब सी खामोशी। नवंबर का महीना था वो और दिल्ली में सर्दियों की शुरुआत हो रही थी। अँधेरा जल्दी हो जाता था, साढ़े छह बजे अँधेरा होना शुरू हो गया था।
cycle आगे पीछे चल रही थी, मैं उसके आगे था वो मेरे पीछे था। अपनी ही मस्ती में चल रहे थे हम दोनों। एक point ऐसा आता है जहाँ से पहले आपको cycle खींचनी पड़ती है चढ़ाई के ऊपर चढ़ाना होता है, फिर उसके बाद एक लंबी सी ढलान है तकरीबन पाँच सौ छह सौ meter की वो ढलान है। वहाँ जाके हम cycle को बिना pedal मारे छोड़ देते है कि अब बस भागने दो।
मैं आगे था, मैंने cycle को अब छोड़ दिया कि नीचे जा के pedal मारेंगे। ठंडी ठंडी हवा लग रही थी, कहीं कहीं पे light जली हुई थी। और मैं अपनी ही मस्ती में देखता हूँ के मेरा दोस्त पीछे आ नहीं रहा है। मैंने दो तीन बार देखा कि वो पीछे दूर दूर तक कहीं पे भी नज़र नहीं आता।
जब ढलान से मेरी cycle उतरी तो एक point पर आकर वो रास्ता दो part में divide होता है। एक जाता है बाहर की तरफ और एक जाता है वापस से उस circle वाले रास्ते पर। दस बारह minute इंतज़ार करने के बाद मैंने अपनी cycle वापस से मोड़ी और तैयार हुआ चढ़ाई पर चढ़ने के लिए।
मुश्किल से आधा minute चला ही था कि मेरी cycle सामने ऊपर की तरफ भागने लगी। वो भी बिना pedal मारे। मेरी एक दम से हालत खराब हो गई कि cycle इतनी तेज़ी से ऊपर कैसे जा रही है। मैं पीछे देखता हूँ कि कौन धक्का दे रहा है और जैसे ही वापस सामने देखा तो मेरा दोस्त cycle ले के बड़ी तेज़ी से नीचे जा रहा था। वो चिल्ला रहा था। पर एक पल में अचानक मेरी आँखों के सामने से वो गायब हो गया। मैंने cycle में break लगाई, साइड में रुक गया।
मेरी सांसे फूल रही थी। दूर-दूर तक कोई भी नजर नहीं आ रहा था। कि इतने में मेरे दोस्त की आवाज मुझे उस तरफ से आती है जहाँ से डरान शुरू होती है। मैं अब उस रास्ते पर कहीं बीच में खड़ा था। मैं साइकिल को खींचता हुआ वहाँ तक पहुँचता हूँ जहाँ से आवाज आयी थी पर वहाँ आसपास कोई भी नहीं था।
मुझे कुछ दूरी पर students जाते नज़र आ रहे थे, वहाँ JNU की library है शायद पढ़ाई करके वो वापस जा रहे होंगे। सामने से एक security guard आता मुझे दिखाई दिया, वो लोग बीच बीच में round लगाते रहते। मैंने उन्हें सब कुछ बताया जो भी मेरे साथ हुआ था।
वो भी cycle पर थे और हम साथ साथ वापस ढलान से नीचे उतरने लगे। वो पूछ रहे थे कि कहाँ से आए हो वगैरा वगैरा। जब नीचे उतरे तो देखा कि मेरा दोस्त बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ खड़ा था। मैंने उससे पूछा, "तू कब आया?" उसने कहा, "मैं तो तेरे पीछे-पीछे ही था। और तू वापस ऊपर क्यों चला गया था?" मैंने कहा, "तू मुझे दिखाई नहीं दिया कहीं पे।"
सिक्योरिटी गार्ड वाले अंकल ने कहा, "रात को यहाँ साइकिल मत चलाया करो। घूमने-फिरने की जगह नहीं है।" मैंने कहा, "जी uncle ध्यान रखेंगे।" वो हमारे साथ बाहर जाने वाले gate तक आए। वहाँ दो security guard और थे, एक अपने register में कुछ कर रहा था, दूसरे ने gate खोला। हम दोनों दोस्तों ने उन uncle को thank you बोलना चाह रहे थे पर हम वहाँ कोई नहीं था।
हम दोनों थोड़ी देर के लिए वहाँ खड़े हो के रह गए। सामने security guard ने gate खोला हुआ था उसने हमसे कहा, "अरे बच्चों जल्दी निकलो सामने गाड़ी भी खड़ी है।" तब हम दोनों जैसे ही एकदम से होश में आए और gate के बाहर आ गए। बाहर main road पर कुछ गाड़ियाँ चल रही थी और हम दोनों वहीं खड़े कुछ बात कर रहे थे। थोड़ी देर में वापस आए साइकिल को ताला लगाया और अपने-अपने घरों को चले गए।
उस रास्ते पर पहले भी कई बार आना-जाना हुआ था हमारा। पर वो पहली बार था जब अँधेरे में ऐसे चले गए थे हम। इतना डर इतनी घबराहट शायद पहले कभी हुई हो। वो एक moment होता है ना जब आप सोचते है कि हे भगवान हमें इस मुसीबत से निकाल दो, वो कुछ ऐसा ही moment था। पता नहीं वो uncle कौन थे और हमें नहीं पता उस दिन हमारे साथ क्या हुआ था। ये एक ऐसी कहानी जो आज तक मैंने कभी किसी से शेयर नहीं की।
आप भी आते-जाते थोड़ा ख्याल रखिए। और अवॉयड कीजिए ऐसे रास्तों को।
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